
यह चेतावनी रूस के पूर्व विदेश मंत्री इगोर इवानोव ने दी है. उन्होंने वॉशिंगटन डीसी में अंतरराष्ट्रीय न्यूक्लियर पॉलिसी के सम्मेलन में यह बात कही है.
कुछ-कुछ इसी तरह के शब्द पूर्व अमरीकी सीनेटर और लंबे वक़्त से हथियारों को नियंत्रित करने वाले आंदोलन के कार्यकर्ता रहे सैम नन ने दोहराए.
उन्होंने कहा, ”अगर अमरीका, रूस और चीन साथ मिलकर काम नहीं करेंगे तो हमारे बच्चों और उनके होने वाले बच्चों के लिए यह किसी बुरे सपने की तरह होगा.”
उन्होंने मौजूदा नेताओं से अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन और सोवियत यूनियन के अंतिम नेता मिखाइल गोर्बाचेव के उन फ़ैसलों का अनुसरण करने की बात कही जिसमें इन दोनों नेताओं ने परमाणु हथियारों का उपयोग ना करने की बात कही थी
इन दोनों नेताओं ने शीत युद्ध के दौरान यह फ़ैसला किया था कि परमाणु हथियारों के दम पर जंग नहीं जीती जाएगी.
रोनल्ड रीगन ने मिसाइल-प्रूफ़ बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस का ख़्वाब देखा था लेकिन उन्होंने इसके साथ ही रूस के अपने समकक्ष गोर्बाचेव के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण पर समझौता भी किया.
माना जाता है कि इसी समझौते के बाद शीत युद्ध अपनी समाप्ति की ओर बढ़ा.
समझौते पर संकट
मौजूदा दौर में परमाणु निरस्त्रीकरण का समझौता संकट में दिख रहा है. अमरीका और रूस के बीच इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज़ (आईएनएफ़) संधि पहले ही खटाई में पड़ चुकी है.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का कहना है कि रूस ने सालों पुरानी इस संधि को तोड़ा है. उन्होंने कहा है कि रूस ने ज़मीन से लॉन्च होने वाली कई क्रूज़ मिसाइल की बटालियन तैनात कर इस संधि के नियमों का उल्लंघन किया है.
वहीं दूसरी तरफ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया है. हालांकि नेटो के सहयोगी राष्ट्रों ने इस मामले में अमरीका का साथ दिया है.
वैसे देखा जाए तो अमरीका के सहयोगी देश भी ट्रंप की विदेश नीति से ख़ुश नहीं हैं.
अमरीका में जर्मनी की राजदूत एमिली हेबर ने संधि के नियमों का उल्लंघन होने की ओर इशारा किया. उन्होंने ध्यान दिलाया कि अमरीका दूसरे देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर भविष्य की योजनाओं को मुश्किल में डाल रहा है.
एमिली हेबर ने ट्रंप प्रशासन की आलोचना भी की. हालांकि इसके पीछे अमरीका राष्ट्रपति और जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल के बीच पैदा हुआ तनाव भी एक वजह रही.
नए संकट पैदा होने की आशंका
परमाणु हथियारों पर हुए सम्मेलन में कई वक्ताओं ने माना कि हथियारों पर बनाई गई पुरानी संधियों के टूटने या परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच तनाव बढ़ना ही एकमात्र चिंता का विषय नहीं है.
चीन के सुपरपावर बनने की राह में आगे बढ़ने और भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव से भी ज़्यादा कुछ नए संकट और ख़तरों की सुगबुगाहट सुनाई पड़ रही है.
इन ख़तरों के कुछ उदाहरण इस तरह हैं. जैसे सुपरसोनिक गति से चलने वाली अत्यधिक सटीक निशाने वाली मिसाइलों का बनना, साइबर हथियारों का निर्माण, अंतरिक्ष पर होने वाला संभावित सैन्यीकरण और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल.
इन तमाम संकटों के आगे पुराने ख़तरे कमज़ोर होते मालूम पड़ते हैं.
जैसा कि पूर्व अमरीकी सीनेटर सैम नन ने कहा, ”इस नई सदी में पूर्व निर्धारित तरीके युद्ध होने की बजाय किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के ज़रिए युद्ध होने की आशंका ज़्यादा हो गई है.”
एक सवाल उठता है कि क्या चीन को परमाणु संधि में शामिल करने के लिए आईएनएफ़ संधि को दोबारा शुरू किया जा सकता है?
इसका काफ़ी हद तक जवाब अमरीका की हथियार नियंत्रण विभाग की अवर सचिव एंड्रिया थॉम्पसन ने दिया. उन्होंने कहा कि चीन ने इस तरह की किसी भी संधि में शामिल होने के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.